सोमवार, 17 जनवरी 2011

मेरा कुछ सामान

एक समय था जब जीवन में बहुत संघर्ष चल रहा था, उस समय की कुछ अजीब सी रचनाएँ..........

(1) मेरा जूता

मेरे पैर का अंगूठा
अक्सर मेरे
फटे हुए जूते में से
मुह निकाल कर झांकता है
और कहता है...
कम से कम अब तो
रहम करो
इस जूते पर और मुझ पर
जब भी कोई पत्थर देखता हूँ
तो सहम उठता हूँ ,
इतने भी बेरहम मत बनो
किसी से कर्ज ले कर ही
नया जूता तो खरीद लो !

(२) मेरी कमीज

मेरी कमीज
जिसकी जेब
अक्सर खाली रहती है
और मेरी कंगाली पर
हंसती है,
मैं रोज सुबह
उसे पहनता हूँ
रात को पीट पीट कर
धोता हूँ
और निचोड़कर सुखा देता हूँ
शायद उसे
हंसने की सजा देता हूँ !

(3)मेरी पतलून

मेरी पतलून
जो कई जगह से फट चुकी है
उसकी उम्र भी
कब की खत्म हो चुकी है,
फिर भी वो बेचारी
दम तोड़ते हुए भी
मेरी नग्नता को
यथासंभव ढक लेती है,
फिर
परन्तु मैं
भी नयी पतलून खरीदने को आतुर हूँ !

(4) मेरा ट्रांजिस्टर

आज फिर से
मेरा ट्रांजिस्टर
याचना सी कर रहा है मुझसे
अपनी मरम्मत के लिए,

एक समय था
जब बहुत ही सुरीली तान में
वो बजता था
और मैं भी
उसके साथ गुनगुनाता था,

पर आज
मरघट सा सन्नाटा है
मेरे घर में
बिना ट्रांजिस्टर के !

(5) मेरा फूलदान

मेरे घर का फूलदान
जिसे मैंने
नकली फूलों से सजाया है,

अक्सर मुझे
तिरछी नज़रों से देखता है,

मानो कह रहा हो....
कि तुम भी
इन्ही फूलों जैसे हो
जो ना तो खुश्बू देते है
और ना ही
जिनकी जड़ें होती है !

34 टिप्‍पणियां:

  1. bahut badhiya poetry...lekin aap to picture me bahut hi dashing lag rahe hain...?

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  2. बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएं....क्या खूब अंदाज़ है आपका, हर नज़्म दिल को छू गई.

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  3. ab ye rachna to vatvriksh ki chhanw me honi chahiye n ... to bhej dijiye mujhe tasweer blog link parichay ke saath

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  4. आपका यह सामान संघर्षों की कहानी बता रहा है ..खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  5. .

    अपने से जुड़ी चीज़ों पर अच्छी कही.
    नयापन लगा आपके रचनाओं में.

    .

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  6. anvarat sangharsh ka naam hi jindgi hai .
    bahut hi yatharthparak imandar rachna ..
    yahi to hai kavita!

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  7. जूते, कमीज, पतलून आदि आदि भी जिससे बातें करते हों वह शख्स कितना खुशनसीब होगा !

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  8. बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएँ | बहुत सुन्दर शब्दों में ढाला है आपने| धन्यवाद|

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  9. jooton se batyaane ka apna hi maza hai...

    wah, maza aa gaya.

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  10. सभी मुक्तक बन गये है।

    सार्थक रचनाएं

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  11. इस लाजवाब रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें...आपका ब्लॉग जितना आकर्षक है उतना ही श्रेष्ठ आपका लेखन है...
    नीरज

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  12. बेहद मार्मिक और दिल से निकली बातें. सराहनीय प्रस्तुति.

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  13. कि तुम भी
    इन्ही फूलों जैसे हो
    जो ना तो खुशबू देते है
    और ना ही
    जिनकी जड़ें होती है !

    वाह, नीलेश जी, क्या खूब लिखा है आपने।
    एकदम नए कथ्य, नए बिम्ब और नए भाव...क्या कहने।
    इन कविताओं को पढ़कर काव्य-पिपासा कुछ तृप्त हुई।

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  14. बहुत खूब ....
    अपनी अभिव्यक्ति का बढ़िया शब्द चित्र खींचा है ! शुभकामनायें

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  15. नीलेश भाई! कहाँ आप दर्द और मृत्यु के अंधकार में भटक रहे थे.. ये हुई न बात! जिसके पास इतनी दौलत हो वो सुखी है! बहुत सुंदर कृति!! जीवित रखिये इस सम्वेदना को और पकड़ कररखिये इस पल को!!

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  16. संघर्ष बयां करती हुई सुंदर रचना -
    शुभकामनायें

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  17. वाह ..निलेश जी ...बहुत सुन्दर रचनाएँ .. दिल को छु जाती हैं ये अंगूठे की जूते से आवाज , कमीज की . पतलून की , ट्रांजिस्टर की और फूलदान की आवाज... और इनसे जुडी आपकी कविता की आवाज ..

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  18. मेरी कमीज
    जिसकी जेब
    अक्सर खाली रहती है
    और मेरी कंगाली पर
    हंसती है,
    मैं रोज सुबह
    उसे पहनता हूँ
    रात को पीट पीट कर
    धोता हूँ
    और निचोड़कर सुखा देता हूँ
    शायद उसे
    हंसने की सजा देता हूँ ...
    नीलेश जी ... जीवन् के कुछ लम्हें जो हमेशा जेहन में रहते हैं ... उन लम्हों को समेत कर लिखी सभी रचनाएँ कमाल हैं ....

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  19. जीवन में यह केवल वस्तुएँ नहीं हैं । इन वस्तुओं के निर्माण ,उनके निर्माणकर्ता ,उनका श्रम सब कुछ मुखर है इनमें इसलिये यह निर्जीव होते हुए भी इनमें संवेदना दिखाई देती है ।

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  20. जिसकी जेब
    अक्सर खाली रहती है
    और मेरी कंगाली पर
    हंसती है,
    मैं रोज सुबह
    उसे पहनता हूँ
    रात को पीट पीट कर
    धोता हूँ
    और निचोड़कर सुखा देता हूँ
    शायद उसे
    हंसने की सजा देता हूँ !

    कमीज को कंगाली पर हंसने की सजा... बेजोड़ रचना... सीधी और सच्ची संवेदनशील अभिव्यक्ति.
    मंजु

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  21. जीवन की कटु सच्चाइयों से साक्षात्कार कराती मार्मिक कविताओं के लिए हार्दिक बधाई!

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  22. बेहतरीन नज्में..दिल को छू लेती हैं

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  23. आज आपकी यह रचना और ब्लॉग चर्चामंच पर सुशोभित है .. आपका इस सुन्दर रचना के लिए आभार



    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_21.html

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  24. निलेश जी पहले ये कोट उतार कर
    फटी कमीज़ और पतलून पहनिए
    फिर लिखियेगा ऐसी कवितायेँ ......

    खैर....
    फूलदान और कमीज़ सबसे बेहतर लगीं ......

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  25. हीर जी, माफ़ कीजिएगा, जब कमीज और पतलून फटी हुआ करती थी तब की ही लिखी हुई है! और ये कोट बहुत मेहनत की कमाई से खरीदा हुआ है!

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  26. जवाब देने के लिए शुक्रिया निलेश जी .....
    जरा सा भूमिका में स्पष्ट कर देते कि ये नज्में आज क़ी नहीं ... तंगहाली अवस्था की हैं ...
    तो मुझ जैसों कोट दिखाई न देता न .....हा...हा...हा....
    मजाक कर रही हूँ ....

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  27. हीर जी, भूमिका में स्पष्ट लिखा हुआ है आप ने पढ़ा नहीं!

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  28. Nilesh ji... bahut khoob. Bahut achhe dhang se aapne apne sangharsh ko vayan kiya hai........

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  29. aapne apne sangharsh ko is kavita main bahut sahejkar rakha hai...bahut achcha laga

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  30. निलेश जी ...बहुत सुन्दर रचनाएँ .. दिल को छु जाती हैं

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  31. आदत.......मुस्कुराने पर
    टीवी पर ठगी का धंधा जोरों पर ........!
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

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