शनिवार, 20 नवंबर 2010

आस्था

जब हताश हो उठता है मन

तो बेजान पत्थरों में

नज़र आती है 

उम्मीद कि किरण

और फिर पूजने लगते हैं

पत्थरों को देवता बनाकर!

11 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा, अभी कल ही खुमार साहब की एक ग़ज़ल पढ़ी थी, उसका शेर कुछ यूँ था :
    लगता है क़यामत का अहसास करीब है,
    'खुमार आज कल मस्जिद जाने लगे है !

    हम तो सहमत है, मनोवैज्ञानिक सत्य .... लिखते रहिये ...

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  2. pattharon se umeed...sakaraatmak soch ki parakashtha...behtareen.

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  3. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

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  4. ये उम्मीद की किरण ही जीवन की प्रेरणा देती है ... तो पत्थर में भगवान् को मानने में क्या हर्ज ..... अछा लिखा है बहुत ..

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  5. यह बेचारा मन ही तो है जो पत्थर में भी भगवान को देख लेता है, पर खुद की शक्ति से अनजान ही रहता है....जो खुद में खुदा देखने का सलीका नहीं सीखा तो बंदे ने क्या सीखा ?

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  6. यह पत्थर आँधी . तूफान . वर्षा . धूप मे भी धैर्य का संदेश हैं ।

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  7. gagar mein sagar bhar diya aapne chand panktoyoN mein .aapki in pankityon pe ye sher yaad aa raha hai ....

    patthar se aadmi ke riste hai ajiib !
    kisi ne thokar mari to kisi ne jal chadha diya !!

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  8. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......

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  9. प्रथम बार आपके ब्लॉग पढ़ रही हूँ। अच्छा लिखते हैं।

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  10. मानो तो देव ...नहीं तो पत्थर .. आस्था पर ही हम टिकें हैं .. अच्छी रचना .

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