शुक्रवार, 11 जून 2010

मेरी रचनाओं को सराहो मत

कोई उठाता है उँगलियाँ 
मेरी रचनाओं पर 
तब दिल तो जलता है
पर मेरा हौसला
और भी बुलंद हो जाता है,

इसलिए लोगों 
मेरी रचनाओं को सराहो मत
उनका पोस्टमार्टम करो
शायद मरने का कारण
तुम्हे पता चल जाए,

और जब तुम्हें पता चल जाए 
तो मुझे ज़रूर बताना
मैं इन्हें बार बार मरते हुए 
नहीं देख सकता,

हो सकता है कि
मेरी ये रचनाएँ रद्दी का पुलंदा हो,

पर मैं क्या करूँ
मेरी लेखनी मेरे वश में नहीं रहती,

अक्सर छटपटाती रहती है वो
कुछ लिखने को,

मेरी लेखनी नहीं जानती
कि वो जो लिख रही है
उससे कोई आहत हो सकता है
या वो किसी आलोचक कि
गोली का शिकार हो सकता है!

'अब अपनी औकात में रहने लगी है वह' (वाणीगीत) पर आई टिप्पणियों को समर्पित!

14 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी लेखनी नहीं जानती
    कि वो जो लिख रही है
    उससे कोई आहत हो सकता है
    या वो किसी आलोचक कि
    गोली का शिकार हो सकता है!
    और जब लेखनी शिकार होती है तो मर्मांतक पीड़ा उपजती है.
    आए दिन तो लेखनियाँ शिकार होती हैं

    बहुत सुन्दर रचना

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  2. संवेदनशील व्यक्ति के मन की व्यथा....

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  3. नीलेश जी ,
    आपने लेखनी की भावनाओ को समझा , लेखनी का लेखन सार्थक हुआ ..
    मगर जिस ने नहीं समझा , उनका अपना दृष्टिकोण हो सकता है ,
    इसमें दुखी होने जैसी कोई बात नहीं है ... मित्रों को अधिकार होता है अपनी निष्पक्ष टिप्पणी का ...
    आपकी संवेदनशीलता के लिए बहुत आभार ....

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  4. sirji...dil ke bhaav kabhi raddi ho hi nahi sakte jab aadmi dimaag se likhta hai tab wo kuch bakwaas hota hai...dil ki baat dilwale samajh hi lete hai

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  5. संवेदनशील व्यक्ति के मन की व्यथा....

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  6. मेरी लेखनी नहीं जानती
    कि वो जो लिख रही है
    उससे कोई आहत हो सकता है
    per log ho jate hain, achha kaha

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  7. क्या कहूं नीलेश भाई.. मुझे तो ना वहाँ कोई कमी लगी थी ना यहाँ.. जितनी समझ उतना ही कह सकता हूँ..

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  8. nilesh bhaai namskaar ...
    kisi jaruri kaam se bahar jana pad raha hai ....aap apani lekhni ke safar ko jaari rakhe ....jald hi fir bhent hogi ,,,abhi samay ki kami hai ...anumati de ,,,alvida mitra

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  9. आप काफी संवेदनशील लगते हैं ! शुभकामनायें !

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