सोमवार, 24 मई 2010

औरत अब प्रश्न करने लगी है ज़िन्दगी से!

दुखों को 
निशब्द पीते हुए
घुट घुट कर 
जीते हुए 
औरत अब प्रश्न करने लगी है
ज़िन्दगी से................
क्या इसी का नाम
ज़िन्दगी है?
अगर हाँ 
तो मौत क्या है?
ये प्रश्न सुन 
ज़िन्दगी निशब्द हो जाती है
और समाज के माथे पर
सलवटें उभर आती है,
और फिर वो कहता है......
किसने दिया औरत को ये हक
की वो ज़िन्दगी से 
इस तरह के प्रश्न करे,
और साथ ही घबरा जाता है वो
कि इस प्रश्न कि गूंज 
कोई तूफ़ान ना खड़ा कर दे,
बहुत चिंताजनक है ये 
कि औरत अब 
प्रश्न करने लगी है जिंदगी से!

21 टिप्‍पणियां:

  1. स्त्री के मन को पढ़ कर यूँ लिखना ...बहुत सटीक और सार्थक है....

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  2. मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
    mathur ji aapki tareef ke liye...

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  3. अच्छी रचना शुरू से अंत तक प्रभावशाली ....///पिछले कुछ दिनों से गाँव गया हुआ था .....आपकी पिछली कुछ रचनाएं नहीं पढ़ पाया समय निकालकर पढता हूँ

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  4. बेहद सार्थक और करीबी रचना है.
    स्त्रियों को हक ही कहाँ है प्रश्न पूछने का

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  5. मन को छू जाने वाले भाव| स्त्री मन को करीब से जाना है आपने
    आशा

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  6. एगो औरत का दिल से सोचकर लिखा हुआ कबिता है... पुरुष मन से नारी बिचार… ई सवाल का कोनो जवाबो नहीं है समाज के पास…
    निलेश भाई, लाजवाब !!

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  7. वाह क्या रचना प्रस्तुत की आपने..सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध वाकी बहुत सुन्दर रचना है

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  8. सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध रचना ।

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  9. अच्छी रचना है ... समाज को यदि सुधारना है तो औरत का हक दिलाना ज़रूरी है ...

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  10. bahut acchhi lagi ye rachna..

    kyu na kare prashn aurat zindgi se
    jab vo kar sakti hai prashn yamraz se to
    aakhir zindgi kya cheez hai????

    kya zindgi bhi purush pradhan samaz ki niwasi hai?


    apki is sateek rachna par badhayi.

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  11. ..और समाज के माथे पर
    सलवटें उभर आती है,
    और फिर वो कहता है......
    किसने दिया औरत को ये हक..
    ...सुंदर कटाक्ष.

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  12. दरअसल औरत भी एक इन्सान है और उसे सवाल करने का हक है |इस अर्थ को और विस्तार दिया जा सकता है कविता में ।

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  13. शरद जी, आपके सुझाव पर मैं अवश्य गौर करूँगा!

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  14. nilesh li
    ek vicharoktejk rchna se aapne ru b ru kraya mai iske hi sndrbh me apni ek kvita blog pr dal rhi hu . aapke comment ki prtiksha rhegi .

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