सोमवार, 17 मई 2010

फिर शब्दों के सिर कटते हैं

कभी कभी सोचता हूँ की लिखना कितना आसान होता है, गरीबी पर, अनपढ़ गरीब बच्चो पर, भूखे बच्चों पर, प्रताड़ित औरत पर, प्रेम पर, संवेदना पर, जुदाई पर, रिश्तों पर,  ईमानदारी पर, आत्मसम्मान पर, ,माँ पर, आज़ादी पर या और भी बहुत कुछ है जिस पर हम बहुत अच्छी कविताएँ या रचनाएँ लिखते हैं, लेकिन क्या हम लिखने और प्रशंशा बटोरने के अलावा भी कुछ करते हैं? अगर नहीं तो हमें अपनी कलम को तोड़ कर फेंक देना चाहिए और चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, कभी कभी लगता है की जिनके पेट भरे हुए होते हैं वही भुखमरी पर अच्छा लिख सकते हैं, और कभी कभी तो मुझे बहुत ही मार्मिक रचना पर भी हंसी आ जाती है, लगता है की हम कितने बड़े फरेबी हैं,  संवेदनशीलता को हम भुनाते हैं, लगता है की हम इतने बेशर्म हो चुके हैं की सिर्फ अच्छे अच्छे शब्दों का चक्रव्यूह बना कर खुद को और सारी दुनिया को धोखा देते हैं, मैं खुद को सबसे बड़ा दोषी मानता हूँ, बाकी सब को मेरे बाद..........


मेरी कलम में बहुत ताक़त है


जब भी कहीं अत्याचार देखता हूँ


मेरी कलम तलवार बन जाती है


फिर शब्दों के सिर कटते हैं


लहू बिखर सा जाता है !


लेकिन सिर्फ शब्दों के सिर काटने से काम नहीं चलेगा, हम जो लिख रहे हैं उस को व्यवहार में लाना होगा और सच में निस्वार्थ भाव से शब्दों पर अमल करना होगा, तभी हम सही मायने में अपने शब्दों से न्याय करेंगे! किसी को बुरा लगा हो तो क्षमा, अच्छा लगा हो तो आभार!


मैं भी कोशिश करूँगा


की सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू


शब्दों से परे भी इक ज़हां है


कभी उधर का भी रुख करूँ !

22 टिप्‍पणियां:

  1. क्या हम लिखने और प्रशंशा बटोरने के अलावा भी कुछ करते हैं? अगर नहीं तो हमें अपनी कलम को तोड़ कर फेंक देना चाहिए और चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए......wajib prashn.jiska jabab bhi aapne bahut acchaa diya hai.......मेरी कलम में बहुत ताक़त है


    जब भी कहीं अत्याचार देखता हूँ


    मेरी कलम तलवार बन जाती है


    फिर शब्दों के सिर कटते हैं


    लहू बिखर सा जाता है !

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  2. आपके शब्दों ने बहुत बाँधा है.... बहुत बढ़िया .

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  3. बेहद सशक्त भाव और उद्वेलित और विचार को प्रेरित करती रचना

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  4. मेरी कलम तलवार बन जाती है
    फिर शब्दों के सिर कटते हैं
    लहू बिखर सा जाता है !
    ......संवेदना से भरी यथार्थ रचना ...काश हर इंसान कुछ दूसरों के लिए भी ऐसी सोच रख पाता..

    प्रस्तुति हेतु धन्यवाद

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  5. sahi kaha is durdasha par likhe bhi to kitna...ab karne ka waqt hai likhne ka nahi...

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  6. 100% sahi....siddhanton ko yadi vyavhaar me na laya gaya to kori siddhantvadita chhal ke siva kuchh bhi nahi....

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  7. वाह निलेश भाई कमाल कर दिया.... सोलह आने सच बात कही है///' जिनके पेट भरे हुए होते हैं वही भुखमरी पर अच्छा लिख सकते हैं,' .....पर एक बात और जो भूखे सोते है ....कभी गहराई में जाकर सोचे और कोई छोटा सर्वे करे तो पायेंगे की इन भूखो में ७०
    प्रतिशत अपनी खुद की वजह से भूखे है ,,,,एक भूखा लेखक भूख पर लिखकर कुछ कमाए और पेट भरे तो मैं उसे गलत नहीं कह सकता और फिर कई बार किसी और भूख को बुझाकर इंसान भूखा सोता है {इस बिषय पर कुछ लिखा है आपकी सेवा में प्रस्तुत जल्द ही करूँगा } .......आपकी कविता वाकई लाजवाब है ...अन्दर तक असर कर गयी ..बहुत खूब ....ये रचना खुद में एक सच्चाई है ....आपको और आपकी कलम को मेरा प्रणाम

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  8. बहुत खूब कहा आपने नीलेशजी।

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  9. आपकी ये बात भी शत प्रतिशत सही है sahi है की ,,,,लिखने से कुछ नहीं होगा ..व्यवहार में लाना होगा ....कई बार हम सिर्फ प्रशंशा के लिए लिखते है ...मैं भी कभी-कभी यही करता हूँ ..जो विषय नापसंद हो उस पर भी लिखता हूँ ..जिसका लिखना कुछ हद तक तारीफ़ पाना ही होता है ...आपकी यह पोस्ट पढ़ कर बहुत कुछ सीखने को मिला ...सार्थक पोस्ट

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  10. विचारणीय पोस्ट है.

    कई बार किंचित कारणों से जो हम नहीं कर पाते मगर जो हम चाहते हैं..जिसे हम सही स्वरुप समझते हैं, लेखन के माध्यम से वो बताते हैं.

    उदाहरण के तौर पर बच्चों को इंजिनियर, डॉक्टर बनने की राह दिखाना, प्रेरित करना हर माँ बाप करता है-जरुरी नहीं कि वो खुद भी इन्जिनियर डॉक्टर हो या बनने निकल पड़े.

    लेखन के माध्यम से अक्सर ही हम अपने अनुभव, जो हमने वो बन कर न कर पाने से अर्जित किये हैं, राह दिखाने हेतु दृष्टगत करते हैं.

    कोशिश होना चाहिये आत्मसात करने की किन्तु मात्र इसलिए कि हम खुद पहले वो बनें या करें, लेखन को रोका जाना भी उचित नहीं.

    एक सार्थक पोस्ट के लिए बधाई.

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  11. एक सार्थक पोस्ट के लिए बधाई :)

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  12. सशक्त और सार्थक पोस्ट..बहुत कुछ सीखने को मिला ! धन्यवाद

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  13. ईश्वर करे कि आपका प्रयास सफल हो!
    --
    "चर्चा मंच" से जानकारी मिलने पर
    मैं इस पोस्ट को पढ़ने आया!
    --
    बौराए हैं बाज फिरंगी!
    हँसी का टुकड़ा छीनने को,
    लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!

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  14. नीलेश जी, आप सबकी दुआओं से जब मेरे पहले कविता संग्रह का विमोचन हुआ था तब मंच पर मैंने भी यही बोला था की 'मुझे अभी कवि न कहें क्योंकि मैं पूर्ण रूप से कवि नहीं हूँ, हाँ कवि बनने की प्रक्रिया में अवश्य हूँ क्योंकि मेरी नज़र में एक कवि वही है जो जैसा लिखे वैसा ही करे भी.' पर हर दिन थोडा थोडा कवि बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ... इससे आगे कहूँगा तो छोटा मुंह और बड़ी बात होगी.

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  15. नीलेश जी सबसे पहले मैं आपका आभार ,हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहती हूँ कि आपने मेरे ब्लॉग का अनुसरण करके मेरे हौसले को ऊपर उठाया
    फिर मैं सिर्फ इतना कहूंगी कि कहना बेहद सरल है और करना बेहद कठिन
    लेकिन शब्द तो ब्रह्म है न ,जिसने इनकी शक्तियों को पहचान लिया और जो कहा वह करने की कोशिश की तो ब्रह्म की शक्तियां आपका साथ देने लगती हैं ,ऐसा मैंने खुद महसूस किया है इसलिए मैं लिखती कम हूँ किन्तु करती ज्यादा हूँ ,क्योंकि मेरा झूठ आपसे ,इनसे ,उनसे छिप जाएगा किन्तु ऊपर वाले से मैं कैसे छिपाउंगी
    वैसे आपके लेख ने मुझे आंदोलित कर दिया ,इसीलिए तो सफाई दे रही हूँ

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  16. 'शब्दों से परे भी इक ज़हां है


    कभी उधर का भी रुख करूँ ! '

    - लेकिन सच यह है कि बहुमत ऐसा नहीं करता / कर पाता.

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  17. nilesh ji
    krt krt abhyas , jdmti hot sujan
    lekin hm sb vkt ke thpedo ko brdasht nhi kr pate hai. agr hm schmuch imandar hai to vkt ki duhai dene ke bjay apne hatho pe bhrosa kre .ykin maniye vkt hmara hoga .
    sargrbhit udgar ke liye bdhai.

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  18. "शब्दों से परे भी इक ज़हां है
    कभी उधर का भी रुख करूँ !"
    बहुत सुंदर.पहली बार आपका ब्लाग देखा.कोरी भावुकता से रचनात्मक व्यवहार ज्यादा बेहतर है.इस तथ्य में दो राय नहीं हो सकती.

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  19. aaj kai dino baad laptop se nata juda..... ek hee saans me jo choot gaya tha use pakdne kee koshish jaree hai........aapkee rachanae aapke soch kee pardarshita ka nimitt hai......aapkee soch apanee hee lagatee hai.......
    kabhee kabhee naree ka goongapan jyada sashakt hota hai..........

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