शनिवार, 24 अप्रैल 2010

मेरे मरने पर !

मेरे मरने पर 
याद करना मुझको तुम 
ग्यारह दिन,
बारहवें पर 
गुलाब जामुन खाना
और मौज उडाना,


तस्वीर मेरी 
बरामदे में जरुर लगाना
बारहवें पर फूल चढ़ाना 
फिर बारह महीने तक भूल जाना,


अगले साल 
बरसी पर ही 
नए फूल लाना
और अगले बारह महीनों के लिए 
उन्हें चढ़ाना,


याद जब मेरी आए 
तस्वीर पर की 
धूल हटाना
बरामदे में मेरी तस्वीर ज़रूर लगाना !

9 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ जरुरत से ज्यादा ही आस लगा बैठे आज के जमाने में...


    खैर, एक उम्मीद तो रहती है..बढ़िया रचना.

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  2. wah......wah
    घर घर का किस्सा है ।
    आनन्ददायक त्रासदी ।

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  3. bahut khoob sir ...par itni vedna....kya sach me itna badal gaya zamana....kuch to badalne ki jarurat hai...

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  4. चलो इस बहाने साल में एक बार फूल तो चढाई जायेगी

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  5. यानि कुल चार लोगों को अलग अलग काम बता दिए आपने , चलिए ठीक है , लेकिन सबको कह दें कि ओवर टाईम भी करना पड सकता है , अब कोई न कोई तो भूलेगा ही , ऐसे में दूसरे को ओवर टाईम करना ही पडेगा ।

    इतनी सुंदर गोहाटी के तस्वीरों को लगाने के बावजूद आपको ये मरघटी सी फ़ीलिंग क्यों आ रही है नीलेश भाई ...बताईये जरा

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  6. sach kaha nilesh ji ,bilkul aisa hi hota hai yah bhi apne kartavyo ka ek hissa hai.
    poonam

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  7. bhai nilesh ji mathur,
    aapke shandar blog par aa kar mujhe achha laga.
    aapki rachnayen bhi padhin .achhi lagi.
    badhai!

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  8. जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

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