शुक्रवार, 26 मार्च 2010

शब्द !

कभी कभी कलम
लाचार सी शब्दों को निहारती है
और शब्द
निष्ठुर बन जाते हैं,

और कभी कभी भावनाएं
शब्दों का रूप धर बहती है
तब कलम
पतवार बन जाती है
शब्दों को पार लगाती है ,

और फिर भीगे हुए शब्द
वस्त्र बदल कर
सज संवर कर
कागज़ पर उतर आते हैं
और रचना बन जाते हैं!

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कहा..यही तो होता है सबके साथ..

    बढ़िया शब्द दिये.

    जवाब देंहटाएं
  2. सही है रचना ऐसे ही निर्मित होती है ,कभी कलम बन जाती है पतवार और कभी हूँ जाती है लाचार

    जवाब देंहटाएं