गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

अब के बरस


आए साल का स्वागत कुछ क्षणिकाओं से ......... 
(1)
साँप अब 
डसना छोड़ दो 
नया साल आ रहा है। 
(2)
सुन लो दुनिया वालों 
हिंदुस्तान मे 
और रक्त नहीं बहेगा 
अब के बरस। 
(3)
सावधान 
कसाब के आका 
और नहीं सहेंगे  
अब के बरस। 
(4)
फिज़ा मे बारूद नहीं 
फूलों की महक होगी 
इस साल। 
(5)
ना हिन्दू हैं हम 
ना मुसलमान 
हम हैं हिन्दुस्तानी 
और ये है हिंदुस्तान। 

रविवार, 23 दिसंबर 2012

ज़ख्म


क्षणिकाएँ .......
(1)
ज़िन्दगी ने दिए थे जो ज़ख्म 
उन्हें सहलाता रहा 
पीता रहा दर्द और जीता रहा 
शुक्रिया उनका 
जिन्होंने मरहम की 
और उनका भी शुक्रिया 
जिन्होंने मेरे ज़ख्मों को कुरेदा।

(2)
ऐ मेरे खुदा 
हर ख़ता के लिए 
माफ़ करना मुझे 
मैं होशो हवाश में न था 
जब मैंने ख़ता की।

(3)
हुश्न वाली ने 
खंज़र छुपा रखा था बगल में 
मुझे ज़िन्दगी से 
मौत ज्यादा खूबसूरत लगी।

(4)
रात इतनी लम्बी हो गयी 
कि सुबह के इंतज़ार में 
ज़िन्दगी बीत गयी।