गुरुवार, 18 नवंबर 2010

अलविदा

यूँ ही एक दिन 
चल दूंगा 
अलविदा कहकर तुम्हें ,

पर तुम निराश ना होना 
मेरे होने ना होने से 
क्या फर्क पड़ता है ,

सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा 
यूँ ही मेरी तस्वीर 
दीवार पर टंगी होगी
फर्क सिर्फ इतना होगा 
कि इस पर 
इक माला चढी होगी ,

यूँ ही घर कि घंटी बजेगी
कोई आएगा सहानुभूति दिखाएगा
यूँ ही बनिए की दुकान से 
बाकी में राशन आएगा 
और खाना पकेगा ,

तुम निराश ना होना 
सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा
सिर्फ मैं ही तो नहीं रहूँगा ,

मेरे होने ना होने से
क्या फर्क पड़ता है!

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय बंधुवर निलेश जी
    नमस्कार !
    बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं , पुरानी कई पोस्ट्स भी पढ़ी हैं अभी । निरंतर अच्छे सृजन-प्रयासों के लिए साधुवाद !
    … प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …

    लेकिन निराशा के स्वरों से उबरने का प्रयास करें , आग्रह है ।
    कविता पढ़ कर मेर मन उदास हो गया …

    मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां आपको सादर - सस्नेह समर्पित हैं-
    किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई ?
    शिथिल न हो मन , क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई !
    निर्मलता निश्छलता सच्चाई , संबल शक्ति तेरे !
    कुंदन तो कुंदन है , क्या यदि कल्मष ने आ घेरा है ?
    वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
    मन हार न जाना रे !

    आप स्वस्थ , सुखी , प्रसन्न और दीर्घायु हों , हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. निलेश जी , आपने तो अंतिम सत्य को ह्रदय में उताड़ दिया है ..... अपना सच भी दिख जाता है ....... लेकिन फर्क पड़ता है उनपर जो आपसे वास्तव में जुड़े होंगे ...... इसलिए उनका ख़याल रखते हुए ईस जीवन को क्यों न अच्छी तरह जी लें . आह ! ......सुन्दर रचना .. बधाई ..

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  3. आखिर में तो खुदी को समझाना पड़ता है साहब, जो जितनी जल्दी समझ कर उबार जाए उतना बेहतर ;)
    लिखते रहिये ...

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  4. सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा
    सिर्फ मैं ही तो नहीं रहूँगा ,

    मेरे होने ना होने से
    क्या फर्क पड़ता है!
    फर्क तो बहुत पढता है--- कई बार तो जीवन ही बदल जाता है--- लेकिन बेबसी मे इसी तरह मन को समझाना पडता है। अच्छी लगी रचना। धन्यवाद।

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  5. बहुत फर्क पड़ता है एक इंसान के होने और न होने से. जीवन और काल की गति तो नहीं रूकती लेकिन ये उनसे पूछो जो किसी के बिना जीवन जीते हैं. साँसे अपने रोकने से नहीं रुकती लेकिन साथ होने का अहसास जो टूट जाता है . उसे बयान नहीं किया जा सकता है.

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  6. सबको एक दिन जाना है इस सच्चाई से जितनी जल्दी परिचित हो जाया जाये उतना ही मन मुक्त रहता है,वैसे तो सभी अपने हैं पर उतने ही जितने सपने हैं !

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  7. डोंट वरी बी हैप्पी
    दोस्त दुनिया अच्छी नहीं लेकिन उतनी बुरी भी नहीं है

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  8. किसी के न रहने से जीवन तो चलता है पर फिर भी किसी को तो बहुत फर्क पड़ता है ....अब भले ही अपने स्वार्थ की खातिर ही पड़ता हो ...

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  9. घुटन आत्महत्या की तरह है भाई!!इस बत की अगर गारण्टी होती कि वो दुनिया इस दुनिया से बेहतर है तो कबके दुनिया छोड़ जाते लोग!!

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  10. सत्य को उद्घाटित किया है इस रचना के माध्यम से आपने ...मुक्तिदाता कविता दिल को छु गयी ...आभार

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  11. gazab ka likha hai nilesh ji.

    magar ek baat kahna chahunga.............aapki kavita padh ke ek sher yaad aa gaya.


    चल ऐ नजीर इस तरह से कारवां के साथ

    जब तू न चल सके तो तेरी दास्ताँ चले.

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  12. सुन्दर रचना है .. गहरी भावनाओं को व्यक्त करती हुई ...

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  13. बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........

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  14. मेरे होने ना होने से
    क्या फर्क पड़ता है!


    kisi ko pade-na-pade humko to jaroor fark padega ,ye khoobsurat lekhan kahan milega padhne ko .

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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